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Monday 16 September 2013

पुलिस की केस डायरी से खुलती पुलिसिया कारवाई की पोल



बिहार में घटने वाले आपराधिक घटनाओं के इतिहास से मै ज्यादा परिचित नही हूँ, लेकिन नवरूणा अपहरण केस को बारीकी से अध्ययन करने के बाद इतना तो जरुर कह सकता हूँ कि बिहार पुलिस भारत की सबसे असंवेदनशील पुलिस है, जो बचपन और जवानी के बीच भी फर्क नही महसूस करती! वैसे तो पहली बार हमें नवरूणा केस की जानकारी दैनिक जागरण में छपी एक स्टोरी से पता लगा था, जो “ बेटी को बचाओं” शीर्षक से पत्रकार द्वारा बहुत ही मार्मिक तरीके से लिखा गया था! केस के लगभग हर पहलू से थोड़ा बहुत परिचय अपने मित्रों, पत्रकारों व नवरूणा के परिजनों से मिलता रहा है! लेकिन जब मेरे पास नवरूणा केस की पुलिस डायरी आई और उसे मैंने देखा तब मुझे पूरा यकीन हो गया कि मुजफ्फरपुर पुलिस ने अगर इस केस को प्रेम प्रसंग के दायरे में रखकर नही देखा होता तो अपनों की चहेती नवरूणा अपने घर में होती. उसका बचपन, उसके सपने सुरक्षित रहते! वह आज़ाद रहती!   

केस की डायरी के कुछ अंश मूल केस डायरी से संपादित करके आप सबके अवलोकनार्थ रख रहा हूँ ताकि आप भी पुलिस के बेशर्म चेहरे, परिजनों द्वारा असहयोग करने, भूमि-विवाद की बात छुपाने जैसे तर्कों की आड़ में नवरूणा की बरामदगी न होने के पुलिसिया आरोपों की सच्चाई परख सकें!
अपहरण के घटना की रात में परिजनों द्वारा जानकारी मिलने के तुरंत बाद पुलिस को सूचित किया गया था. पुलिस तक़रीबन 1 घंटे लेट से पहुंची जबकि थाने से नवरूणा का घर महज 4-5 मिनट की दुरी तय करके पैदल पहुंचा जा सकता है. 

खैर, पुलिस डायरी में “20 सितंबर, समय 8 बजे” अंकित रिपोर्ट के मुताबिक अनुसंधानकर्ता अमित कुमार नवरूणा के स्कूल जाते है जहाँ उसके स्कूल में आंठवी कक्षा की परीक्षाएं चल रही होती है. वे उपस्थिति पंजी को भी देखते है, जिसमे शत प्रतिशत उपस्थिति दर्ज थी. स्कूल में प्रिंसिपल और वर्ग शिक्षक से भी पूछताछ होती है. अपने पूछताछ के क्रम में वे नवरूणा के स्वभाव की प्रशंसा करते है और उसे होनहार बताते है!
    
“21 सितंबर, 9 बजे” अनुसंधानकर्ता नवरूणा की दोस्त श्रेया चौधरी से पूछताछ करते है. इस पूछताछ में श्रेया ने बताया, “ मै और नवरूणा एक ही क्लास में पढ़ते थे तथा साथ में ही ट्यूशन भी पढ़ने जाते थे. नवरूणा की दोस्ती हमसे और संस्कृति से ज्यादा थी तथा हमलोगों के अलावा क्लास के ही एक लड़के “विवेक” से भी था!”

विवेक का जिक्र आते ही उसके घर का पता पूछा जाता है. न बताने पर उसकी काफी खोजबीन की जाती है, लेकिन घर का पता नही मिल पाता है. यहाँ संस्कृति के घर का पता चल गया लेकिन विवेक का नही चला. इसलिए पुलिस संस्कृति के घर पूछताछ के लिए जाती है.  

नवरूणा की सबसे खास दोस्त संस्कृति पुलिसिया पूछताछ में बताती है कि “नवरूणा हमारी सबसे अच्छी दोस्त थी. हम आपस में हर बात शेयर करते थे. उसका किसी से कभी कोई झगड़ा नही होता था! उसने कभी किसी के बारे में तंग करने या दुश्मनी की कोई बात मुझसे नही बताई थी.”

केस डायरी में “22 सितंबर, 8 बजे” दर्ज रिपोर्ट में कहा गया है कि नवरूणा के परिजनों(माँ-पिताजी) के मोबाइल पर आए कॉल रिकॉर्ड को खंगाला गया, जिसमे कोई संदिग्ध नंबर नही मिला. सब परिजनों व दोस्तों के नंबर थे.

केस डायरी में 23 व 24 सितंबर को किसी भी प्रकार की कोई कारवाई का कुछ भी दर्ज नही है.
“25 सितंबर, 8 बजे” अंकित रिपोर्ट में लिखा गया है कि नवरूणा का कंकड़बाग, पटना में होने की सूचना मिली. वहां जाकर छापेमारी हुई लेकिन पुलिस के हाथ कुछ भी सुराग नही मिला.
केस डायरी में 26,27 व 28 सितम्बर को किसी भी प्रकार की कोई भी कारवाई का कुछ भी बात दर्ज नही है.

“29 सितंबर, 8 बजे” दर्ज रिपोर्ट में यह कहा गया है कि “गोरौल और मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर नवरूणा के होने की गुप्त सूचना मिली लेकिन छापेमारी में कुछ भी नही मिला”.

30 सितंबर से लेकर 1 अक्टूबर के बीच किसी भी प्रकार की कोई भी कारवाई होने की कुछ भी सूचना डायरी में दर्ज नही है.  

“2 अक्टूबर, 10 बजे” अंकित रिपोर्ट में यह कहा गया कि पुलिस को नवरूणा के हाजीपुर में होने की संभावना की सूचना प्राप्त हुई, जिसके बाद छापेमारी हुई लेकिन कोई सफलता हाथ नही लगी”.       
3, 4 व 5 अक्टूबर के बीच किसी भी कारवाई की कोई भी कारवाई होने की कुछ भी सूचना डायरी में दर्ज नही है.

केस डायरी में “6 अक्टूबर, 8 बजे” दर्ज रिपोर्ट में लिखा गया है कि “अतुल्य चक्रवर्ती से पूछताछ की गई, जिसमे उनके रिश्ते-नातेदारों के बारे में जानकारी ली गई!”........”अनुसंधान जारी है” लिखकर जानकारी इकठ्ठा करने व अनुसन्धान के काम की इतिश्री हो गई.

केस डायरी में 7, 8 व 9 अक्टूबर के बीच किसी भी प्रकार के कोई भी कारवाई होने की कुछ भी सूचना दर्ज नही है.

“10 अक्टूबर, 10 बजे” अंकित रिपोर्ट में अतुल्य चक्रवर्ती के घर पहुंचकर, उनके मुजफ्फरपुर सहित अन्य स्थानों पर रह रहे रिश्तेदारों के बारे में विस्तार से जानकारी लेने की बात लिखी गई है. इसमें आगे उनकी ज़मीन से जुड़ी बातों के संदर्भ में भी विस्तार से जानकारी इकठ्ठा करने व पूछताछ के क्रम में रमेश कुमार उर्फ़ बबलू, राकेश कुमार, श्याम पटेल, सुदीप चक्रवर्ती और अजय गुप्ता द्वारा अपहरण किए जाने की बात नवरूणा के पिता द्वारा किए जाने की बात भी लिखी गई है. इसी पूछताछ में नवरूणा की माँ की बातों से यह तथ्य सामने आई कि “पिछले दो वर्षों से बहुत सारे लोगों ने ज़मीन लेने के लिए हमसे (नवरूणा के परिजनों से) संपर्क किया. संपर्क के दौरान ही नवरूणा की माँ को यह अंदेशा था कि अगर दिल्ली और बनारस में रहने वाले उसके रिश्तेदारों ने अपनी ज़मीन बेच दी और वे अकेले बच गए तो अपराधी उन्हें परेशान कर सकते है, उनकी ज़मीन हड़प सकते है.       

केस डायरी में 11 से 18 अक्टूबर तक, कुल 8 दिनों की कारवाई का कोई भी जिक्र नही किया गया है.

केस डायरी में “19 अक्टूबर, शाम सात बजे” अंकित रिपोर्ट में अजय गुप्ता की खोजबीन, उसका अपने घर से फरार पाए जाने, रमेश कुमार उर्फ़ बबलू, सुदीप चक्रवर्ती और श्याम पटेल की गिरफ़्तारी की बात लिखी हुई है.   

20 अक्टूबर की केस डायरी संदिग्ध आरोपियों को न्यायालय में पेश करने की बात करके समाप्त कर दी गई है!


यह यह बताना जरुरी है कि गिरफ्तारी नवरूणा के परिजनों द्वारा आत्महत्या की धमकी देने से हुई थी. उसके पहले तक पुलिस घर आकर लगातार झूठी दिलाशा दे रही और बाहर प्रेम प्रसंग की बात समाज में फैला रही थी. इन दोनों से आजिज़ आकर आत्महत्या की धमकी परिजनों ने दी, जिसके बाद सकते में आई पुलिस सक्रीय हुई और एसएसपी ने 24 अक्टूबर, 2012 तक नवरूणा की बरामदगी का भरोसा दिलाया(http://www.jagran.com/bihar/muzaffarpur-9779731.html).

केस डायरी में अंकित रिपोर्ट के मुताबिक अनुसंधानक अमित कुमार द्वारा 22 अक्टूबर को एसएसपी के पत्र (ज्ञापांक संख्या- 4335/CR/22.10.2012) के आलोक में नवरूणा केस, उसके मूल कागजातों के साथ थानाध्यक्ष जितेन्द्र प्रसाद को सौन्पा गया.

जितेन्द्र प्रसाद ने तेजी से जाँच का कार्य शुरू किया. पहले ही दिन कई बड़े भू-माफियाओं, जिसमे ब्रजेश सिंह और मो. शब्बू आलम जैसे नाम शामिल है, की गतिविधियों पर नजर रखने की बात केस डायरी में कही गई है.

केस डायरी के मुताबिक 29 अक्टूबर को पहली बार गिरफ्तार किए गए लोगों से पूछताछ की गई!
नवरूणा केस में कुछ ठोस होने का आभास पुलिस उपाधीक्षक(नगर) द्वारा नवरूणा की बरामदगी के लिए विस्तार से तैयार कार्य योजना (ज्ञापांक संख्या- 2109/नगर/दि.31 अक्टूबर,2012) से हुई. इस पत्र के अनुसार 8 बिन्दुओं पर काम करने के लिए पुलिस की अलग अलग टीम बनाई गई और उन्हें अनुसंधान में लगाया गया! इस पत्र के अनुसार 1 नवंबर को एक बैठक में इसकी समीक्षा की भी बात कही गई.  

सबसे महत्वपूर्ण जानकारी इस केस डायरी में 1 नवंबर को दर्ज है, जिसके मुताबिक ज्ञापांक संख्या- 5485/गो./1.11.2012 द्वारा एसएसपी ने मामले की जाँच में लगे पुलिस टीम को कुछ दिशा निर्देश दिए.

उसी दिन घटनास्थल का मुआयना DIG द्वारा की गई थी. DIG ने निरिक्षण के पश्चात्, वादी से पूछताछ व अन्य पहलुओं पर विचार करने के बाद पुलिस अनुसंधान में निम्न त्रुटियाँ पाई, जिसका जिक्र केस डायरी में की गई है. त्रुटियाँ कुछ इस प्रकार से बताई गई, जिसके बारे में परिजन भी शुरुआत से आगाह करा रहे थे :-

(1) घटना स्थल पर फोरेंसिक टीम को क्यों नही बुलाया गया?
(2) घटना स्थल का फिंगर-प्रिंट क्यों नही लिया गया?
(3) घटनास्थल से ताला क्यों नही जब्त किया गया?
(4) जिस गार्ड के पास गेट की चाभी थी, उससे ठीक से पूछताछ क्यों नही की गई?
(5) होटल के कर्मचारियों में से कई से पूछताछ क्यों नही की गई?
(6) तीन गिरफ्तार अभियुक्तों को रिमांड पर क्यों नही लिया गया?
(7) किस आधार पर अनुसंधानक परिवारवालों को बताते रहे कि लड़की सुरक्षित है और जल्द ही घर आ जाएगी?
(8) इस बात पर भी अनुसन्धान होना चाहिए कि क्या ट्रेफिकिंग के लिए उसका अपहरण तो नही किया गया!

इसमें यह भी कहा गया है कि........””विदित हो कि यह अत्यंत संवेदनशील मामला है और इस घटना को लेकर आम जनों में काफी आक्रोश है. यह मामला भू-विवाद से जुड़ा प्रतीत होता है. इस मामले में उपरोक्त बिन्दुओं पर अविलंब वैज्ञानिक अनुसन्धान तथा अन्य बिन्दुओं पर गहनता पूर्वक अनुसन्धान की जरुरत है.......अतएव आप सभी चर्चित बिन्दुओं का अनुपालन कर अद्यतन प्रगति प्रतिवेदन से दो दिनों के अंदर अधोहस्ताक्षरी को अवगत करावे. साथ ही इस कांड के अनुसन्धान से संबंधित प्रगति से प्रतिदिन अधोहस्ताक्षरी को अवगत करावे....ह. एसएसपी””.

इसके बाद का रिपोर्ट का जिक्र करना ज्यादा समसामयिक नही है क्यूंकि वह महज खानापूर्ति है. उसमे सिर्फ आरोपों की गठरी है! कहे तो पुलिसिया नाकामी की बू आती है!

यह कहने में कोई गुरेज नही कि नगर थानाध्यक्ष जितेन्द्र प्रसाद ने इस केस में अपनी तरफ से कोई कोर कसार नही छोड़ी, लेकिन नतीज़े तक न पहुँचने की बात संदिग्ध है! हो सकता है, उनपर दबाब हो. दबाब की पुष्टि भी उन्होंने की है, जिसे एक दैनिक अख़बार ने प्रमुखता से छपा भी था.
केस डायरी के सन्दर्भ में ऊपर लिखे गए तःथ्यों से कई बातों पर नज़र जाती है, जो पूरी घटना में पुलिसिया भूमिका को समझने में उपयोगी है.

पहला,  पुलिस प्रेम प्रसंग का रंग देने में शुरुआत से ही क्यों लगी रही?
दूसरा, जब अपहरण की शिकायत दर्ज की गई थी और पहले दिन ही भू-माफिया की बात करी गई थी तो चौतरफा कारवाई क्यूँ नही की गयी?
तीसरा, परिजनों को लगातार झूठे आश्वासन क्यूँ दिए गए?
चौथा, परिजनों को मीडिया से दूर रहने की सलाह क्यूँ दी गई?
पांचवा, गिरफ्तारी एक महीने देरी से क्यूँ हुई और गिरफ्तार लोगों से तुरंत पूछताछ क्यूँ नही की गयी?
छठा, पुलिस लगातार परिजनों के संपर्क में थी और परिजन प्रतिदिन पुलिस से बात करते थे, फिर असहयोग की बात कहाँ से आई?
सांतवा, परिजनों ने जिन भू-माफियाओं पर शक जताया था, उनपर कारवाई क्यूँ नही हुयी?

(अभिषेक रंजन की रिपोर्ट)
      

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